Tuesday, December 2, 2014

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मोक्षदा एकादशी 2014 | Mokshda Ekadashi 2014 | Mokshada Ekadasi Vrat

मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी के रुप में जाना जाता है.  वर्ष 2014 में मोक्षदा एकादशी 2 दिसम्बर को मनाई जाएगी. मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी अनेकों पापों को नष्ट करने वाली है. मोक्षदा एकादशी  को दक्षिण भारत में वैकुण्ठ एकादशी के नाम से भी जाना जता है. इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के प्रारम्भ होने से पूर्व अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था.
इस दिन श्री कृष्ण व गीता का पूजन शुभ फलदायक होता है. ब्राह्राण भोजन कराकर दान आदि कार्य करने से विशेष फल प्राप्त होते है. यह एकादशी मोक्षदा के नाम से प्रसिद्ध है. इस दिन भगवान श्री दामोदर की पूजा, धूप, दीप नैवेद्ध आदि से भक्ति पूर्वक करनी चाहिए.

मोक्षदा एकादशी पूजन | Moksha Ekadashi Pujan

व्रत के दिन स्नान करने के बाद ही मंदिर में पूजा करने के लिये जाना चाहिए. मंदिर या घर में श्री विष्णु पाठ करना चाहिए और भगवान के सामने व्रत का संकल्प लेना चाहिए. इस व्रत का समापन द्वादशी तिथि के दिन ब्राह्माणों को दान-दक्षिणा देने के बाद ही होता है. व्रत की रात्रि में जागरण करने से व्रत से मिलने वाले शुभ फलों में वृद्धि होती है. मोक्षदा एकादशी व्रत को करने से व्यक्ति के पूर्वज जो नरक में चले गये है, उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है.

मोक्षदा एकादशी महत्व |Significance of Moksha Ekadashi

इसकी कथा इस प्रकार है. प्राचीन गोकुल नगर में वैखानस नाम का एक राजा राज्य करता था. उसके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्माण रहते थे. एक रात्रि को स्वप्न में राजा ने अपने पिता को नर्क मे पडा देखा, अपने पिता को इस प्रकार देख कर उसे बहुत दु:ख हुआ.
वह ब्राह्माणों के सामने अपनी स्वप्न के बारे कहता है कि पिता को इस प्रकार देख कर मुझे सभी ऎश्वर्य व्यर्थ महसूस हो रही है. आप लोग मुझे किसी प्रकार का उपाय बताएं, जिससे मेरे पिता को मुक्ति प्राप्त हो सके. राजा के ऎसे वचन सुनकर ब्राह्माण कहते हैं कि हे राजन, यहां समीप ही एक भूत-भविष्य के ज्ञाता एक "पर्वत" नाम के मुनि है. आप उनके पास जाईए, वही आपको इसके बारे में बतायेगें.
राजा ऎसा सुनकर मुनि के आश्रम पर गए़ उस आश्रम में अनेकों मुनि शान्त होकर तपस्या कर रहे थे. राजा ने जाकर ऋषि को प्रणाम करके सारी बत उन्हें बताई राजा की बात सुनकर मुनि ने आंखे बंद कर ली और कुछ देर बाद मुनि बोले कि आपके पिता ने अपने पिछले जन्म में एक दुष्कर्म किया था. उसी पाप कर्म के फल से तुम्हारा पिता नर्क में गए है.
यह सुनकर राजा ने अपने पिता के उद्वार की प्रार्थना ऋषि से की. मुनि राजा की विनती पर बोले की मार्गशीर्ष मसके शुक्ल पक्ष में जो एकादशी होती है. उस एकादशि का आप उपवास करें. उस एकादशी के पुन्य के प्रभाव से ही आपके पिता को मुक्ति मिलेगी. मुनि के वचनों को सुनकर उसने अपने परिवार सहित मोक्षदा एकादशी का उपवास किया. उस उपवास के पुण्य को राजा ने अपने पिता को दे दिया. उस पुन्य के प्रभाव से राजा के पिता को मुक्ति मिल गई और वह स्वर्ग में जाते हुए अपने पुत्र से बोले, हे पुत्र तुम्हारा कल्याण हों, यह कहकर वे स्वर्ग चले गए.

मोक्षदा एकादशी व्रत कथा

 
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महाराज युधिष्ठिर ने कहा- हे भगवन! आप तीनों लोकों के स्वामी, सबको सुख देने वाले और जगत के पति हैं। मैं आपको नमस्कार करता हूँ। हे देव! आप सबके हितैषी हैं अत: मेरे संशय को दूर कर मुझे बताइए कि मार्गशीर्ष एकादशी का क्या नाम है? 

उस दिन कौन से देवता का पूजन किया जाता है और उसकी क्या विधि है? कृपया मुझे बताएँ। भक्तवत्सल कहने लगे कि धर्मराज, तुमने बड़ा ही उत्तम प्रश्न किया है। इसके सुनने से तुम्हारा यश संसार में फैलेगा। मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी अनेक पापों को नष्ट करने वाली है। इसका नाम मोक्षदा एकादशी है। 

इस दिन की धूप-दीप, नैवेद्य आदि से भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। अब इस विषय में मैं एक पुराणों की कथा कहता हूँ। नाम के नगर में वैखानस नामक राजा राज्य करता था। उसके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण रहते थे। वह राजा अपनी प्रजा का पुत्रवत पालन करता था। एक बार रात्रि में राजा ने एक स्वप्न देखा कि उसके पिता नरक में हैं। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। 

प्रात: वह विद्वान ब्राह्मणों के पास गया और अपना स्वप्न सुनाया। कहा- मैंने अपने पिता को नरक में कष्ट उठाते देखा है। उन्होंने मुझसे कहा कि हे पुत्र मैं नरक में पड़ा हूँ। यहाँ से तुम मुझे मुक्त कराओ। जब से मैंने ये वचन सुने हैं तब से मैं बहुत बेचैन हूँ। चित्त में बड़ी अशांति हो रही है। मुझे इस राज्य, धन, पुत्र, स्त्री, हाथी, घोड़े आदि में कुछ भी सुख प्रतीत नहीं होता। क्या करूँ?

राजा ने कहा- हे ब्राह्मण देवताओं! इस दु:ख के कारण मेरा सारा शरीर जल रहा है। अब आप कृपा करके कोई तप, दान, व्रत आदि ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरे पिता को मुक्ति मिल जाए। उस पुत्र का जीवन व्यर्थ है जो अपने माता-पिता का उद्धार न कर सके। एक उत्तम पुत्र जो अपने माता-पिता तथा पूर्वजों का उद्धार करता है, वह हजार मुर्ख पुत्रों से अच्छा है। जैसे एक चंद्रमा सारे जगत में प्रकाश कर देता है, परंतु हजारों तारे नहीं कर सकते। ब्राह्मणों ने कहा- हे राजन! यहाँ पास ही भूत, भविष्य, वर्तमान के ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है। आपकी समस्या का हल वे जरूर करेंगे।

ऐसा सुनकर राजा मुनि के आश्रम पर गया। उस आश्रम में अनेक शांत चित्त योगी और मुनि तपस्या कर रहे थे। उसी जगह पर्वत मुनि बैठे थे। राजा ने मुनि को साष्टांग दंडवत किया। मुनि ने राजा से सांगोपांग कुशल पूछी। राजा ने कहा कि महाराज आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल हैं, लेकिन अकस्मात मेरे च्ति में अत्यंत अशांति होने लगी है। ऐसा सुनकर पर्वत मुनि ने आँखें बंद की और भूत विचारने लगे। फिर बोले हे राजन! मैंने योग के बल से तुम्हारे पिता के कुकर्मों को जान लिया है। उन्होंने पूर्व जन्म में कामातुर होकर एक पत्नी को रति दी किंतु सौत के कहने पर दूसरे पत्नी को ऋतुदान माँगने पर भी नहीं दिया। उसी पापकर्म के कारण तुम्हारे पिता को नर्क में जाना पड़ा।

तब राजा ने कहा ‍इसका कोई उपाय बताइए। मुनि बोले- हे राजन! आप मार्गशीर्ष एकादशी का उपवास करें और उस उपवास के पुण्य को अपने पिता को संकल्प कर दें। इसके प्रभाव से आपके पिता की अवश्य नर्क से मुक्ति होगी। मुनि के ये वचन सुनकर राजा महल में आया और मुनि के कहने अनुसार कुटुम्ब सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत किया। इसके उपवास का पुण्य उसने पिता को अर्पण कर दिया। इसके प्रभाव से उसके पिता को मुक्ति मिल गई और स्वर्ग में जाते हुए वे पुत्र से कहने लगे- हे पुत्र तेरा कल्याण हो। यह कहकर स्वर्ग चले गए।

मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी का जो व्रत करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत से बढ़कर मोक्ष देने वाला और कोई व्रत नहीं है। इस कथा को पढ़ने या सुनने से वायपेय यज्ञ का फल मिलता है। यह व्रत मोक्ष देने वाला तथा चिंतामणि के समान सब कामनाएँ पूर्ण करने वाला है।

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